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This is given in English and Gujarati. The blog contains Saman Shri Shrutpragyaji’s special short messages as well as summaries of his lectures and reflections. Reading it brings inspiration, personal confidence, and spiritual upliftment.

એક્યુપ્રેશર એટલે શું?

એક્યુપ્રેશર એટલે શું?

Acu - લેટિન શબ્દ છે. એનો અર્થ થાય છે - needle - સોય અને Pressure - પ્રેશર એટલે દબાણ. સોય દ્વારા કે આંગળીઓ કે અંગૂઠા દ્વારા શરીરના ભાગોમાં દબાણ આપવું. દબાણ આપવું એક માનવીય મનોવૃત્તિ છે. સુશ્રુતમાં મર્મ સ્થાન કહે છે. કહેવાય છે કે આ પદ્ધતિ બૌદ્ધ સાધુઓ ચીનમાં લઇ ગયા અને આજે પણ ચીનના દરેક ઘરમાં એક વ્યક્તિ આ જ્ઞાન ધરાવે છે.

"પગના તળિયામાં, હાથની હથેળીમાં અને શરીરના અન્ય ભાગોમાં આવેલા ચોક્કસ દાબબિદુંઓ પર ચોક્કસ પ્રકારનું, ચોક્કસ પ્રમાણમાં ચોક્કસ સમય સુધી તીવ્ર અને તીક્ષ્ણ દબાણ આપીને રોગોને અટકાવવાની કે મટાડવાની અથવા કેટલાક અસાધ્ય રોગોમાં થતી પીડા કે વેદનામાં રાહત પહોંચાડવાની પદ્ધતિને એકયુપ્રેશર કહેવાય છે."

આ પદ્ધતિની વિશેષતા છે - 

1. એક પણ પૈસાનો ખર્ચ નથી.

2.સીધી - સાદી અને સરળ છે.

3.આડઅસર નથી.

4. નુકશાન નથી.

5. સાધનોની જરૂર નથી.

6.જાતે જ સાજા થઇ શકાય છે.

7. સમય અને જગ્યાની મર્યાદા નથી.

8. શરીરના તત્ત્વોની વધ-ઘટને સમાન કરે છે.

9. સર્વાંગીણ આરોગ્ય સુધારે છે.

Saman Shrutpragyaji

29 March 2019

Rajkot

 

આયુર્યોગ - પ્રયોગ : 1: કમળો ( Jaundice) જોન્ડિસ:

ઔષધિ પ્રયોગ: ભૂમિ આવલાં - ભોય આંબલી( હિન્દી નામ ) ના પાંચ અંગોનો રસ કાઢવો.અડધો કપ ગાળીને સૂર્યોદય પહેલાં અને અડધો કપ સૂર્યાસ્ત પછી બે દિવસ સુધી લેવો - ચાર ડોઝ લ્યો એટલે કમળો મટી જાય છે.

એકયુપ્રેશર: જમણા પગમાં લીવરના પોઇન્ટ દબાવવા 

યોગાસન: શશાંકાસન - 3 વાર કરવું - બે - બે મિનિટ રોકાવું 

પ્રાણાયામ: અનુલોમ - વિલોમ: 5 મિનિટ કરવું - ખાલી પેટે 

ધ્યાન પ્રયોગ: લીવર પર ચમકતા બ્લૂ કલરનું ધ્યાન કરવું - 3 મિનિટ 

Saman Shrutpragyaji

28 March 2019

Rajkot

त्याग - भोग और आत्म ज्ञान 

त्याग - भोग और आत्म ज्ञान 

जीवन में आसक्ति को मिटाने के लिए कोई प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। क्योकि यह प्रयास निषेध से लड़ने का प्रयास है। निषेध से लड़ने से वो और अधिक प्राणवान बन जाती है। निषेध को मिटने का एक ही मार्ग है कि विधेयात्मक को प्राणवान बना दे। अंधकार से लड़ने का या उसे मिटाने का प्रयास मत करो, प्रकाश की व्यवस्था करो।  आसक्ति अंधकार के समान है। आत्मज्ञान का दिया जले तो आसक्ति का अंधकार मिट सकता है। 

अधिकतम लोग आसक्ति से लड़ते है और उसके कारण वे विरक्त हो जाते है।  विरक्ति आसक्ति का ही उल्टा पहलू है। एक आसक्त व्यक्ति जिससे आसक्त होता है, एक विरक्त व्यक्ति उसी से विरक्त होता है।  एक के मन में राग भाव है, दूसरी के मन में द्वेष भाव है। आसक्ति भी नहीं, विरक्ति भी नहीं, अनासक्ति चाहिए। यह अनासक्ति आत्मज्ञान का परिणाम है। 

घर का त्यागी विरक्त है, इसलिए वह आश्रम बना कर नई आसक्ति खड़ी कर लेगा। धन को छोड़ने वाला त्याग में आसक्त हो जाएगा। गृहस्थ जीवन का त्याग करने वाला परिवार का त्याग कर देता है, लेकिन नये शिष्यों का मोह उन्हें नए बंधन में फंसा देता है। 

अनासक्ति के लिए किसे पाना या किसे छोड़ना अनिवार्य नहि है। व्यक्ति जहाँ है वही रह कर व्यक्ति और वस्तु का उपयोग करते हुए उनके प्रति अनासक्त रह सकता है। भीतर से तृप्त साधक सब कुछ करते हुए भीतर से द्रष्टा बनकर, कमल की तरह निर्लिप्त रह सकता है।

- समण श्रुतप्रज्ञजी 

27 March 2019

बड़ा हुआ तब से मैं कभी अकेला नहीं रहा 

"उम्मीदें ... ख्वाहिशें .... जरूरतें ....  जिम्मेदारियां  .... , बड़ा हुआ तब से मैं कभी अकेला नहीं रहा  "

संसारी अकेला रह नहीं सकता और संन्यासी भीड़ में रह नहीं सकता।  एकांत अध्यात्म है, भीड़ संसार है। संसारी जीव के तीन लक्षण है।  पहला लक्षण है - उम्मीदें - आशा का बंधन पहेला बंधन है। आज सुख नहीं मिला, शायद कल मिल जायेगा, आज यह चीज नहीं मिली, शायद कल मिल जाएगी। उम्मीदें जीवनभर दौड़ाती रहती है, तड़पाती रहती है। 

दूसरा लक्षण है - ख्वाहिशें  .... इच्छाए अनंत है। इच्छा समाप्त हो सकती है, पूरी कभी नहीं होती। पूरी होना उनका स्वभाव नहीं है। संसारी जीव इच्छा के जाल में मकड़े की तरह फंसता चला जाता है। भाग्यशाली है वो जिनकी इच्छाए अल्पतम है।  

तीसरा लक्षण है - जरुरतें - इस भौतिक माहौल में आदमी की जरूरतें बढ़ गई। अमीर सुखी नहीं है, सुखी वह है जिनकी जरूरतें कम से कम है। मन की शांति भंग हो, उतना परिग्रह और संग्रह मत करो, संग्रह की भी एक आदत पड़ जाती है। यह आदत आदमी को गिराती है। 

चौथा लक्षण है - जिम्मेदारियां  - पदार्थ का मोह छूटता है तो  जिम्मेदारियां का बंधन आदमी ओढ़ लेता है। ओर वह इसी लिए की आदमी के भीतर फिर नाम की भूख उघड़ती है। अपने नाम के लिए आदमी बहुत साडी संस्थाओ से जुड़ जाता है। भाग्यशाली वो है जिनके सर पर ६० की उम्र के बाद कोई जिम्मेदारियां नहीं है। सेवा करो, मदद करो, लेकिन ६० के बाद इस बंधन में मत पड़ो - अन्यथा तुम साधना - आराधना नहीं कर पाओगे। बड़ा हुआ तब तक नहीं, मौत की घडी तक आदमी अकेला नहीं हो पाता। सौभाग्यशाली है वो जिनको अकेला रहने का और अपनी आत्म साधना करने का मौका मिल पाता है। ज्ञानी कहते है इन चार बंधनो से खूब सावधान रहो। 

- समण श्रुतप्रज्ञजी 

मार्च २०, २०१९  

मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है

"मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है, किसी फ़क़ीर से सुना था मुझ में ही खुदा रहता है।" 

आदमी विचित्र है। उनकी विचित्रता यह है कि वो सुखी होने के लिए जिंदगीभर दुखी होता है। सुख भीतर है, आदमी को यह सत्य मालूम है फिर भी वो सुख के लिए सारी दुनिया घूमेगा लेकिन भीतर नहीं झांकेगा। शांति की खोज भी अब नई अशांति का कारण बन गई है। अब इबादत भी धंधा और दिखावा बन गई। बहार शांति का वातावरण मिलेगा, शांति नहीं। शांति की खोज भीतर करनी पड़ेगी। अपनी सच्ची इबादत करनी है तो भीतर के खुदा से मुलाकात करो।

अनुभवी फ़क़ीर सदा यही कहेगा कि 'खुद के भीतर ही खुदा रहता है।' उस खुदा का मुलाकात का तरीक़ा एक मात्र ध्यान है। आँख बंद करो, शरीर को स्थिर एवं सीधा रखो, आते जाते श्वास को थोड़ी देर देखो, मन को शांत करो। उसके बाद शांत मन से भीतरी तत्व का अनुभव करे, विचार आये तो उसके साक्षी मात्र रहे, विचारो से लड़े नहीं, सिर्फ उसे देखें। विचार शांत होंगे तब भीतरी शांति और प्रकाश का अनुभव होगा।

- समण श्रुतप्रज्ञजी 

१८ मार्च २०१९ 

બોલવાની કળા

કોઈએ સરસ કહ્યું છે - " જયારે મૂડ ખરાબ હોય ત્યારે એક પણ શબ્દ ન બોલવો કારણકે મૂડ સુધારવા લોકો મળી જશે પણ શબ્દો સુધારવા મોકો નહિ મળે". આ જીવનની એક વાસ્તવિકતા છે. માણસનો મૂડ બગડેલ હોય છે ત્યારે એ બોલ્યા વગર રહી શકતો નથી, અંદર એટલી આંટી ઘૂંટી ચાલે છે કે બોલી નાખે ત્યારે જ એ જીવને શાંતિ લાગે છે પણ આવી શાંતિ એની પોતાની જ શાંતિ ભંગ કરી નાખે છે. અશાંતિની નવી પરંપરા ઉભી કરે છે. 

બગેડેલા મૂડમાં એ જે બોલશે એ શબ્દો સામલાને તીરની જેમ ચૂભે છે. બોલ્યા પછી માણસને પછતાવો પણ થાય પણ એવા પસ્તાવાનો કોઈ અર્થ નથી. માણસને મૂડમાં લાવવા લોકો મળી જશે પણ તમારા દ્વારા બોલાયેલા શબ્દોને કોઈ નહિ સુધારી શકે. જાગૃત માણસ એ છે જે બોલતા પહેલા સારી પેઠે વિચારી લે કે હું જે કઈ બોલીશ એનાથી મારી કે અન્યની અશાંતિ તો ઉભી નહિ થાય ને ! બોલવા પછી પછતાવો કરવા કરતાં બોલ્યા પહેલા વિચારી લેવું વધુ સારું અને લાભનું કારણ છે.  

- સમણ શ્રુતપ્રજ્ઞજી

તા.16 માર્ચ 2019

गंगासती का आध्यात्मिक संदेश

गंगासती सौराष्ट्र की एक अद्भूत ज्ञानी संत हुई।  आध्यात्मिक विकास की कामना करने वाले मानव के लिए उनके पद टॉनिक के समान है। उनके पद गुजरात के हर घर में गूँजते है। इन पदों को ध्यान से सुनकर उन पर आत्म चिंतन किया जाए तो अद्भूत रत्न मिल सकते है एवं जीवन की दिशा अवश्य बदलेगी, क्योंकि उनकी वाणी में आत्म ज्ञान की गंध है।  

उनका एक पद है - मेरु तो डगे पण जेना मन न डगे रे - अद्भूत भजन है। वे कहते है - सच्चा हरिभक्त कौन है ? विपत्ति पड़ने पर भी जो विचलित न हो वही सच्चा हरी का भक्त है। अपन लोग सामान्य सी मुश्केली में भी हिल जाते है। ऐसे समय में हम लोग संकल्प को तोड़ देते है एवं अध्यात्म मार्ग से चलित हो जाते है। चाहे कितनी भी मुश्किलें आये फिर भी स्वीकृत मार्ग से हिले नहीं वही साधक होने का प्रमाण है। 

आगे कहते है -  भाई रे, नित्य रहेवुं सत्संग मा ने जेने आठे पहोर आनंद रे,  - ऐसा व्यक्ति नित्य सत्संग में मस्त रहेता है और कारण वो दिन रात आनंद में झूलता रहता है। मानवी को कुसंग की जन्मो जन्म की आदत है, सत्संग आदत डालनी पड़ती है। सत्संग ही आनंद का आधार है और कुसंग ही दुखी होने का धंधा है।  आदमी दुःख में भगवान का भजन करता है , दुःख के समय भजन में स्थिरता रहनी मुश्किल है। सुख में प्रभु को भजो - आत्मा का ध्यान धरो तो दुःख के समय भी आनंद छूटेगा नहीं। 

મેરુ તો ડગે પણ જેના મન ના ડગે રે

ગંગાસતી સૌરાષ્ટ્રનું એક અદભૂત પાત્ર છે. આધ્યાત્મિક વિકાસ કરવા ઝંખતા માનવી માટે એમના પદો ટોનિક સમાન છે. એમના પદો ગુજરાતના ઘરે ઘરે ગવાય છે. આ પદોને ધ્યાનથી સાંભળી એના પર આત્મ ચિંતન કરીએ તો અદભૂત રત્નો મળે અને જીવનની દિશા બદલાયા વિના રહે નહિ. કેમ કે એમની વાણીમાં આત્મજ્ઞાનની ગંધ છે. 

એમનું એક પદ છે - મેરુ તો ડગે પણ જેના મન ના ડગે રે - અદભૂત ભજન છે. એ કહે છે સાચો હરિભક્ત કોણ છે? વિપદ પડે પણ વણસે નહિ ઈ તો હરિજનના પરમાણ રે - ગમે એટલી વિપત્તિ આવે છતાં જે વિચલિત ન થાય એ સાચો હરિભક્ત છે. આપણે સામાન્ય મુશ્કેલી આવે એટલે સંકલ્પ અને અધ્યાત્મ માર્ગથી હલી જતા હોઈએ છીએ. ગમે એટલી મુશ્કેલી આવે સ્વીકારેલા માર્ગથી વિચલિત ન થવું એમાં જ સાચું શાણપણ છે. 

આગળ એ કહે છે - ભાઈ રે નિત્ય રહેવું સત્સંગમાં ને, જેને આઠે પહોર આનંદ રે, - માનવીને કુસંગની જન્મો જન્મની આદત છે, સત્સંગની આદત પાડવી પડે છે. સત્સંગમાં રહેશો તો આઠે પહોર આનંદમાં રહી શકશો. માણસ દુઃખમાં ભગવાનને ભજે છે. દુઃખમાં ભજનમાં સ્થિરતા રહેવી અઘરી છે. સુખમાં પ્રભુને ભજો, આત્માનું ધ્યાન ધરો તો દુઃખમાં દુઃખી નહિ થાઓ.  

सेवा का भी इंफेक्शन लगना चाहिए

अभी कुछ दिन पहले माधापर - राजकोट गांव मुझे चिराग ठक्कर नाम का एक युवान मिला। वह गली के बहुत सारे कुत्तो को दूध पिला रहा था। मैं वॉक करने निकला था। मैंने उनको पूछा आप क्या कर रहे हो ? उसने कहा कुत्तो को दूध पिला रहा हूँ। मैंने पूछा कब से यह सेवा कार्य कर रहे हो? उसने कहा : दो - तीन साल से - जब से पता चला कि यहाँ बहुत सारे कुत्ते भूखे है, तब से मैं रोज आता हूँ ओर यह सेवा कार्य करता हूँ। मैंने पूछा - क्या काम करते हो? उसने कहा बस यही सेवा काम। मैंने पूछा पैसे कहा से आते है ? कहा - पापा का चाय का धंधा है, अच्छा कमाते है, मैं भी सुबह दो घंटे में धंधा देख लेता हूँ, फिर सारा दिन यही काम करता हूँ। मैंने कहा बहुत उत्तम काम है - इतनी युवानी में सेवा की भावना अच्छी बात है।  मुझे कहा - यदि मैं  व्यसन का शिकार होता और गर्ल फ्रेंड के पीछे भागता तो रोज के १००० - १२००  रूपया उड़ा देता और शरीर को बर्बाद करता वो बात अलग। वो पैसे मैं व्यसन और विकार में न फंस के इस सेवा में लगाता हूँ। मुझे उस युवान की श्रेष्ठ भावना पर गौरव महसूस हुआ। बहुत सारे अच्छे युवान आज भी है जो चुप चाप सेवा का काम करते है। मुझे मन ही मन उनको प्रणाम करने का मन हुआ और तब से मैंने भी मेरे आदमी को बोल दिया कि अपनी गली के कुत्तो रो रोज दूध पिला दो और हिसाब संस्था को दे देना। सेवा का भी इंफेक्शन लगना चाहिए।