"उम्मीदें ... ख्वाहिशें .... जरूरतें .... जिम्मेदारियां .... , बड़ा हुआ तब से मैं कभी अकेला नहीं रहा "
संसारी अकेला रह नहीं सकता और संन्यासी भीड़ में रह नहीं सकता। एकांत अध्यात्म है, भीड़ संसार है। संसारी जीव के तीन लक्षण है। पहला लक्षण है - उम्मीदें - आशा का बंधन पहेला बंधन है। आज सुख नहीं मिला, शायद कल मिल जायेगा, आज यह चीज नहीं मिली, शायद कल मिल जाएगी। उम्मीदें जीवनभर दौड़ाती रहती है, तड़पाती रहती है।
दूसरा लक्षण है - ख्वाहिशें .... इच्छाए अनंत है। इच्छा समाप्त हो सकती है, पूरी कभी नहीं होती। पूरी होना उनका स्वभाव नहीं है। संसारी जीव इच्छा के जाल में मकड़े की तरह फंसता चला जाता है। भाग्यशाली है वो जिनकी इच्छाए अल्पतम है।
तीसरा लक्षण है - जरुरतें - इस भौतिक माहौल में आदमी की जरूरतें बढ़ गई। अमीर सुखी नहीं है, सुखी वह है जिनकी जरूरतें कम से कम है। मन की शांति भंग हो, उतना परिग्रह और संग्रह मत करो, संग्रह की भी एक आदत पड़ जाती है। यह आदत आदमी को गिराती है।
चौथा लक्षण है - जिम्मेदारियां - पदार्थ का मोह छूटता है तो जिम्मेदारियां का बंधन आदमी ओढ़ लेता है। ओर वह इसी लिए की आदमी के भीतर फिर नाम की भूख उघड़ती है। अपने नाम के लिए आदमी बहुत साडी संस्थाओ से जुड़ जाता है। भाग्यशाली वो है जिनके सर पर ६० की उम्र के बाद कोई जिम्मेदारियां नहीं है। सेवा करो, मदद करो, लेकिन ६० के बाद इस बंधन में मत पड़ो - अन्यथा तुम साधना - आराधना नहीं कर पाओगे। बड़ा हुआ तब तक नहीं, मौत की घडी तक आदमी अकेला नहीं हो पाता। सौभाग्यशाली है वो जिनको अकेला रहने का और अपनी आत्म साधना करने का मौका मिल पाता है। ज्ञानी कहते है इन चार बंधनो से खूब सावधान रहो।
- समण श्रुतप्रज्ञजी
मार्च २०, २०१९