"मैं अपनी इबादत खुद ही कर लूँ तो क्या बुरा है, किसी फ़क़ीर से सुना था मुझ में ही खुदा रहता है।"
आदमी विचित्र है। उनकी विचित्रता यह है कि वो सुखी होने के लिए जिंदगीभर दुखी होता है। सुख भीतर है, आदमी को यह सत्य मालूम है फिर भी वो सुख के लिए सारी दुनिया घूमेगा लेकिन भीतर नहीं झांकेगा। शांति की खोज भी अब नई अशांति का कारण बन गई है। अब इबादत भी धंधा और दिखावा बन गई। बहार शांति का वातावरण मिलेगा, शांति नहीं। शांति की खोज भीतर करनी पड़ेगी। अपनी सच्ची इबादत करनी है तो भीतर के खुदा से मुलाकात करो।
अनुभवी फ़क़ीर सदा यही कहेगा कि 'खुद के भीतर ही खुदा रहता है।' उस खुदा का मुलाकात का तरीक़ा एक मात्र ध्यान है। आँख बंद करो, शरीर को स्थिर एवं सीधा रखो, आते जाते श्वास को थोड़ी देर देखो, मन को शांत करो। उसके बाद शांत मन से भीतरी तत्व का अनुभव करे, विचार आये तो उसके साक्षी मात्र रहे, विचारो से लड़े नहीं, सिर्फ उसे देखें। विचार शांत होंगे तब भीतरी शांति और प्रकाश का अनुभव होगा।
- समण श्रुतप्रज्ञजी
१८ मार्च २०१९