अभी कुछ दिन पहले माधापर - राजकोट गांव मुझे चिराग ठक्कर नाम का एक युवान मिला। वह गली के बहुत सारे कुत्तो को दूध पिला रहा था। मैं वॉक करने निकला था। मैंने उनको पूछा आप क्या कर रहे हो ? उसने कहा कुत्तो को दूध पिला रहा हूँ। मैंने पूछा कब से यह सेवा कार्य कर रहे हो? उसने कहा : दो - तीन साल से - जब से पता चला कि यहाँ बहुत सारे कुत्ते भूखे है, तब से मैं रोज आता हूँ ओर यह सेवा कार्य करता हूँ। मैंने पूछा - क्या काम करते हो? उसने कहा बस यही सेवा काम। मैंने पूछा पैसे कहा से आते है ? कहा - पापा का चाय का धंधा है, अच्छा कमाते है, मैं भी सुबह दो घंटे में धंधा देख लेता हूँ, फिर सारा दिन यही काम करता हूँ। मैंने कहा बहुत उत्तम काम है - इतनी युवानी में सेवा की भावना अच्छी बात है। मुझे कहा - यदि मैं व्यसन का शिकार होता और गर्ल फ्रेंड के पीछे भागता तो रोज के १००० - १२०० रूपया उड़ा देता और शरीर को बर्बाद करता वो बात अलग। वो पैसे मैं व्यसन और विकार में न फंस के इस सेवा में लगाता हूँ। मुझे उस युवान की श्रेष्ठ भावना पर गौरव महसूस हुआ। बहुत सारे अच्छे युवान आज भी है जो चुप चाप सेवा का काम करते है। मुझे मन ही मन उनको प्रणाम करने का मन हुआ और तब से मैंने भी मेरे आदमी को बोल दिया कि अपनी गली के कुत्तो रो रोज दूध पिला दो और हिसाब संस्था को दे देना। सेवा का भी इंफेक्शन लगना चाहिए।