આપણે બધા જોડાયેલા છીએ - આ વાક્ય આપણે લોકોએ કેટલીય વાર કાનથી સાંભળ્યું હશે, આપણને બૌદ્ધિક રીતે એ સ્પષ્ટપણે ખબર છે કે આ વાત સાચી છે. આપણામાંથી ઘણાને આ સત્યનો અનુભવ થયો હશે કે આપણે બધા જોડાયેલા છીએ. સામાન્ય રીતે આપણી આદત અલગ અલગ અને સ્વતંત્ર રીતે રહેવાની છે, કેમકે એમાં આપણને સુખનો ભાસ થાય છે. પ્રકૃતિ આપણને આ આદતમાંથી ઘણીવાર સીધી કે આડકતરી રીતે બહાર લાવે છે અને બીજા લોકોનું કેટલું મૂલ્ય છે એ સમજાવે છે.
આ સંકટના સમયે આપણે એવા કેટલાય લોકો સાથે ફોન કરીને લાગણીશીલ થઈને વાતો કરી હશે કે જેમને આપણે કેટલાય સમયથી મળ્યા પણ નહિ હોઈએ. આવા સમયે કેમ એમનું સાન્નિધ્ય મિસ કરીએ છીએ? આનું કારણ છે કે સ્વભાવથી આપણે જોડાયેલા છીએ અને એકબીજા સાથે આપણું સુખ દુઃખ પણ જોડાયેલું છે. વર્તમાન સ્થિતિના નિમિતે 'આપણે બધા જોડાયેલા છીએ' - આ વાત નાટકીય રીતે દ્રશ્યમાન થઈને આંખોની સામે દેખાય છે.
આજે લોકડાઉનની આ સ્થિતિમાં કદાચ આપણે એકબીજાથી શારીરિક રીતે દૂર હોઈએ તો પણ આપણે વધુ સ્પષ્ટપણે જોઈ શકીયે છીએ કે બીજા મનુષ્યનું ભાગ્ય આપણા ભાગ્ય સાથે કેવી રીતે જોડાયેલું અને ગૂંથાયેલું છે. એટલું જ નહિ પ્રકૃતિનું દરેક સર્જન એકબીજા સાથે સંબંધના ગહેરા તાંતણે બંધાયેલું છે. પ્રકૃતિમાં ક્યાંય પણ એક તત્ત્વનું સંતુલન બગડે છે ત્યારે એની સાથે જોડાયેલું અન્ય તત્ત્વ એનાથી પ્રભાવિત થાય છે. આ સનાતન સત્યને ક્યારેય નજરઅંદાજ ન કરશો.
વિશ્વ સંકટના આ દિવસોમાં ઘણું કહેવાઈ રહ્યું છે. સ્પષ્ટ ચિત્ર સામે આવવું મુશ્કેલ છે, તેથી આ વસ્તુ મૌન રહીને જ વધુ સારી રીતે પ્રતિબિંબિત કરી શકીશું. અવાજોની ચતુરાઈથી પ્રભાવિત થયા વગર શાંત ચિત્તે બેસીને વિચારીશું તો કેટલાક સત્યો સામે દેખાઈ શકે છે જે કોરોના સંકટ પર પ્રકાશ પ્રગટાવે છે. તમારામાંથી મોટાભાગના લોકો આ વિચારોથી પહેલેથી જ પરિચિત થઇ ચુક્યા હશે! આ સ્થિતિ આપણને શીખવે છે કે વર્તમાન પરિસ્થિતિમાંથી આપણે શું શીખી શકીએ છીએ. કોરોના પાસે એક અરીસો છે, જે આપણને શીખવે છે કે આપણો આપણી પોતાની સાથેનો સંબંધો કેવા છે ? આ પૃથ્વી સાથેનો આપણો વ્યવહાર કેવો છે? પરસ્પર એકબીજા સાથેનો આપણો નાતો કેવો છે? અને આપણે જીવીએ છીએ તે દેશોની વિશાળ સરહદો સાથેના આપણા સંબંધો કેવા છે?
ચાલો આપણે સત્યના જુદા જુદા પાસાઓને સમજવાની કોશિશ કરીએ. કોરોના વિષે આપ જે કંઈ આજુ બાજુ સાંભળો છો, જુઓ છો, ત્યાં એક બાબત કોમન છે, જેના પર આપણે સહમત થઈએ છીએ, અને તે વાત એ છે : આપણે બધા એક માનવીય કુટુંબ તરીકે, ઇતિહાસમાં પહેલીવાર એક અનન્ય ક્ષણનો સામનો કરી રહ્યા છીએ - આ ઘટના સંકટની તો છે પણ ઊંડાણથી વિચારીશું તો આ સંકટ એક મોટી ભેંટ બનીને આપણી સામે આવી છે. Crisis ( સંકટ ) શબ્દને ચાઈનામાં વેઈજી કહેવાય છે અને તેના બે અર્થ થાય છે. એક અર્થ થાય છે ભયાનક અને બીજો અર્થ થાય છે “વળાંક અથવા પરિવર્તનની ક્ષણ કે તક. કોઈ શંકા નથી કે કોવિડ 19 એ આપણા વિશ્વ માટે એક વેઇજી પળ છે. આમાંથી કંઈક શીખીશું તો આ એક ઉપહાર છે.
अति सूक्ष्म एवं न दिखने वाले कोरोना वायरस ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है। आदमी सोच रहा था हम कुछ भी कर सकते है, हम कुदरत को दबोच सकते है। हम अपनी बुद्धि और पैसे के जोर से दुनिया को मुट्ठी में कर सकते है। इस वायरस ने आदमी के इस घमंड को तोड़ कर रख दिया है। यह छोटा वायरस हमें बहुत कुछ सिखाता है, यदि आदमी इनसे कुछ सीखे तो !!
१. यह वायरस कहता है - अपनी औकात में रहो, दुनिया में सिर्फ तुम ही नहीं रहते हो, और प्राणी जगत भी है, उनका भी ख़याला करो। इतने क्रूर मत बनो कि दूसरों की स्वतंत्रता नष्ट हो जाए। महावीर ने कहा, आपकी तरह दुसरो को भी जीने का अधिकार है। दूसरों के अस्तित्व की सुरक्षा ही तुम्हारे अस्तित्व का आधार है। आदमी हो, आदमियत दिखाओ, अपने स्वाद के लिए हमारे जैसे निर्दोष जीवो को नष्ट मत करो। हमें खाना छोडो, शाकाहारी रहो। भगवत गीता का संदेश है - करुणापूर्ण हृदय से सात्विक आहार पेट में डालो। आहार अस्तित्व टिकाने के लिए है, अस्तित्व मिटाने के लिए नहीं।
२. यह वायरस कहता है - अपनी बुद्धि और धन का घमंड मत करो। इस विराट अस्तित्व में तुम ना कुछ हो - किस बात का अहंकार करते हो। क्यों सृष्टि का संतुलन मिटाने में लगे हो? ऐसा करने से तुम्ही मिटोगे - यह मत भूलो।बुद्धि है तो सदुपयोग करो जिससे जगत को और अधिक सुन्दर रख सको, धन है तो किसी को मदद कर उसकी दुआएँ लो। यह दुआ तुम्हे शांति देंगी। हर चीज को धंधा मत बनाओ।धंधादारी वृत्ति में मानवता को मत खोओ.. इंसानियत की इज्ज़त रखो।
३. यह वायरस कहता है - लालच को पोषने में इतने मत दोड़ो की घर में रहना भूल जाओ। परिवार भी कुछ है। परिवार को प्रेम करो, इज्जत दो, समय दो, साथ में उठो बैठो, खाओ और एक दूसरो को पूरा समय दो। जिंदगी का केंद्र पैसा नहीं है, प्रेम है - यह मत भूलो।आधुनिकता के नाम पर अब रविवार भी परिवार के लिए नहीं बचा है। जरा सोचो तुम किधर भाग रहे हो? तुम्हारी ज्यादा और बेमतलब भागदौड़ पर ब्रेक लगाना जरुरी था, इसी लिए मुझे आना पड़ा।
४. यह वायरस कहता है - श्रम के साथ विश्राम जरुरी है। बहिर्मुखता के साथ अंतर्मुखता जरुरी है। भोग के साथ योग जरुरी है। पर चिंतन के साथ स्व चिंतन जरुरी है। भीड़ के साथ एकांत जरुरी है। धन के साथ ध्यान जरुरी है। इस वायरस ने हमें एकांत दिया, विश्राम दिया, वास्तविकता का बोध दिया। भीतर झांकने का मौका दिया। इस वायरस ने हमें अकेला रहना भी सिखाया है।
५. इस वायरस ने हमें प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की याद दिलाई। यह वायरस कहता है - आधुनिकता के नाम पर तुम अपनी मूल जड़ो से उखडो मत। अपने मूल से जुड़े न रहे इसलिए में तुम्हे जगाने आया हूँ। हग करना नहीं, हाथ जोड़कर नमस्कार करने की संस्कृति ही शुभ है, गरम पानी पीना ही शुभ है, शाकाहारी रहना ही शुभ है,हाथ धो कर खाना खाना और स्वच्छता बनाये रखना ही शुभ है।
६. यह वायरस यह भी कहता है कि जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा - उस कर्म को भोगने के लिए तैयार रहना। पूरी दुनिया को काबू में कर लूंगा ऐसा घमण्ड कभी मत पालना, यह घमंड तुम्हे ही भारी पडेगा। तुम नम्र रहो ताकि दुसरो का अस्तित्व भी सुरक्षित रहे। दूसरा नहीं बचेगा तो तुम भी नहीं बचोगे -इस सत्य को अब कभी मत भूलना।
इस वायरस की आवाज है कि मैंने इसलिए अपने पाँव पसारे है क्योकि तुम सीमा के बहार जा रहे थे, तुम्हारे कारण अन्य जीवो की सुरक्षा को खतरा था। तुम ज्यादा अहंकारी बन रहे थे। तुम्हे दुसरो के दुःख की कोई चिंता नहीं थी। तुम ज्यादा ही स्वछंद हो चूके थे। तुम्हारे भीतर की संवेदना और मानवता मिटती जा रही थी। तुम अपने धन के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। इस लिए मैंने अपना फ़र्ज़ निभाया है। इसको कुदरत की क्रूरता मत समज़ना, आशीर्वाद समझना की तुम्हे जगाया, संभाला, सावचेत और सतर्क किया।
आप लोग दो सप्ताह घर में रहे इतने में तो पूरी पृथ्वी हील होने लगी, प्राणी सृष्टि को अपनी स्वतंत्रता का अहसास हुआ। पर्यावरण खिलने लगा। वायु शुद्ध होने लगी, जल में जीवंतता और निर्मलता आने लगी। तुम्हारे एक के सीधे होने से दुनिया को कितना लाभ हुआ? तुम अब भी जाग जाओ और जागे रहोगे तो फिर हम कभी नहीं आएंगे। यदि इसमें फिर कोई भूल कि तो हमें लाचारीवश फिर आना पड़ेगा। मुझे आशा है कि अब आप मुझे आने केलिये बाध्य नहीं करोगे।तकलीफ के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
Coronavirus
Expectation is the root of attachment. Relationship with expectation is attachment and relationship without expectation is detachment. That attachment is inseparable from suffering is a universal truth based on logic and experience. All enlightened beings have no attachment and this is why they are blissful and beyond all suffering. Where there is less attachment there is more happiness, and vice versa. Everyone knows this truth on the mental level and in terms of their own direct experience. Other creatures apart from humans generally have little attachment and for a short period of time, either in order to survive, or to protect their young. However, when their offspring become self-sufficient, the parents usually withdraw and at the same time lose their attachment. Humans, by contrast, tend to build up numerous and often unnecessary relationships with almost anyone they meet. It is the reason also why they make many friends. But all this shows that they are empty inside, that they are unfulfilled by themselves. Yet, if a person can become detached from everyone and can live happily alone, that individual comes to have universal love and compassion for the whole of humanity as well as for all living beings without any expectation.
(YouTube, animated film, narrated by Orson Wells, 8 mins.)
The message of this short film is a must-see for anyone trying to understand and apply the principles of anekantvad, namely, the understanding that truth is often seen in different ways by different people and, in this sense, is always relative. The film presents in a humorous yet thought-provoking way how humans form groups with opposing world views, ideas and philosophies, with young against old, black against white, and so on and so forth. However, the film also explores how differences can be managed to ensure that everyone is respected and can learn to live peacefully with various types of challenge brought by social, racial and political differences. It is an application of anekantvad that is thought provoking, instructive and enjoyable.
मित्रता और अच्छे लोगो का मिलना जीवन का सौभाग्य है। मित्रता के बिना जीवन अधूरा और निरस है। सुख दुःख में, समय पर सलाह लेने में, मन की भावनाएँ व्यक्त करने में और जीवन का आनंद शेर करने में ऐसे मित्र जीवन के लिए सकून साबित होते हैं। मित्रता की पहचान एवं कसौटी संकट की घडी में होती है। इसके साथ यह भी सच है कि स्वार्थ वृत्ति मित्रता को नष्ट कर देती है। अपने स्वार्थ के लिए मित्रता का कभी भी दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। मित्रता निखालिस होनी चाहिए।
में अपनी जिंदगी में दृष्टिपात करता हूँ तो मेरे जीवन में ऐसे बहुत कम मित्र है। कुछ मित्र शिष्य जैसे है, कुछ मित्र सच में मित्र है, मैं उन्हें मित्रता दृष्टि की देखता हूँ। भारत से ज्यादा भारत के बहार के लोग मेरे से काफी नजदीकी रखते है।
आज दिवाली है। नया साल शरू होगा।लोग दीप जलाएंगे। बहार का दीप निमित्त मात्र है, मूल तो भीतर का दीप जले तभी अमनचैन और शांति की अनुभूति हो सकती है। आदमी बहार से विकास करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भीतर से समृद्ध होने का प्रयत्न हो तभी सच्चे आनंद की अनुभूति हो सकती है। परमात्मा प्रकाश है, यह शरीर परमात्मा का मंदिर है, ध्यान दीप है। जागृति, ध्यान एवं आत्म निरिक्षण का दीप जले तभी आदमी भीतर से समृद्ध होगा। जब यह होगा उसके बाद आदमी सच्चे अर्थ में धनवान होगा, फिर नहर की लोभ लालच पर अपने आप ब्रेक लगेगी। भीतर की दुनिया भी अनंत है। उस अनंत को जानने का मार्ग ध्यान है। ध्यान का नशा चढ़ना जरुरी है। उसके लिए नियमित अभ्यास जरुरी है। चलो आज से ध्यान का दीप जलाये। यह दीप किसी भी प्रकार के तुफानो में भी बुझेगा नहीं। नए साल की यही शुभेच्छा।
Saman Shrutpragyaji
27/10/2019
નાની શરૂઆતને પકડી રાખો : Frenzy William
Are you a fan of small beginnings? Do you relish those first, maybe awkward steps when trying something new?
Make one call to the friend who is hurting?
Offer one meal to the man who is hungry?
Find one practical need and serve wholeheartedly?
And in so doing, you can shine a little light in the darkness of this world.
What one thought, action, prayer, and person can you focus on today?