आदमी खुद वायरस बन चूका है (Coronavirus)  - समण श्रुतप्रज्ञ
Peace of Mind

अति सूक्ष्म एवं न दिखने वाले कोरोना वायरस ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है। आदमी सोच रहा था हम कुछ भी कर सकते है, हम कुदरत को दबोच सकते है। हम अपनी बुद्धि और पैसे के जोर से दुनिया को मुट्ठी में कर सकते है। इस वायरस ने आदमी के इस घमंड को तोड़ कर रख दिया है। यह छोटा वायरस हमें बहुत कुछ सिखाता है, यदि आदमी इनसे कुछ सीखे तो !!

१. यह वायरस कहता है - अपनी औकात में रहो, दुनिया में सिर्फ तुम ही नहीं रहते हो, और प्राणी जगत भी है, उनका भी ख़याला करो। इतने क्रूर मत बनो कि दूसरों की स्वतंत्रता नष्ट हो जाए। महावीर ने कहा, आपकी तरह दुसरो को भी जीने का अधिकार है। दूसरों के अस्तित्व की सुरक्षा ही तुम्हारे अस्तित्व का आधार है। आदमी हो, आदमियत दिखाओ, अपने स्वाद के लिए हमारे जैसे निर्दोष जीवो को नष्ट मत करो। हमें खाना छोडो, शाकाहारी रहो। भगवत गीता का संदेश है - करुणापूर्ण हृदय से सात्विक आहार पेट में डालो। आहार अस्तित्व टिकाने के लिए है, अस्तित्व मिटाने के लिए नहीं। 

२. यह वायरस कहता है - अपनी बुद्धि और धन का घमंड मत करो। इस विराट अस्तित्व में तुम ना कुछ हो - किस बात का अहंकार करते हो। क्यों सृष्टि का संतुलन मिटाने में लगे हो? ऐसा करने से तुम्ही मिटोगे - यह मत भूलो।बुद्धि है तो सदुपयोग करो जिससे जगत को और अधिक सुन्दर रख सको, धन है तो किसी को मदद कर उसकी दुआएँ लो। यह दुआ तुम्हे शांति देंगी। हर चीज को धंधा मत बनाओ।धंधादारी वृत्ति में मानवता को मत खोओ.. इंसानियत की इज्ज़त रखो।

३. यह वायरस कहता है - लालच को पोषने में इतने मत दोड़ो की घर में रहना भूल जाओ।  परिवार भी कुछ है। परिवार को प्रेम करो, इज्जत दो, समय दो, साथ में उठो बैठो, खाओ और एक दूसरो को पूरा समय दो। जिंदगी का केंद्र पैसा नहीं है, प्रेम है - यह मत भूलो।आधुनिकता के नाम पर अब रविवार भी परिवार के लिए नहीं बचा है। जरा सोचो तुम किधर भाग रहे हो? तुम्हारी ज्यादा और बेमतलब भागदौड़ पर ब्रेक लगाना जरुरी था, इसी लिए मुझे आना पड़ा।   

४. यह वायरस कहता है - श्रम के साथ विश्राम जरुरी है। बहिर्मुखता के साथ अंतर्मुखता जरुरी है। भोग के साथ योग जरुरी है। पर चिंतन के साथ स्व चिंतन जरुरी है। भीड़ के साथ एकांत जरुरी है। धन के साथ ध्यान जरुरी है। इस वायरस ने हमें एकांत दिया, विश्राम दिया, वास्तविकता का बोध दिया। भीतर झांकने का मौका दिया। इस वायरस ने हमें अकेला रहना भी सिखाया है। 

५. इस वायरस ने हमें प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की याद दिलाई। यह वायरस कहता है - आधुनिकता के नाम पर तुम अपनी मूल जड़ो से उखडो मत। अपने मूल से जुड़े न रहे इसलिए में तुम्हे जगाने आया हूँ। हग करना नहीं, हाथ जोड़कर नमस्कार करने की संस्कृति ही शुभ है, गरम पानी पीना ही शुभ है, शाकाहारी रहना ही शुभ है,हाथ धो कर खाना खाना और स्वच्छता बनाये रखना ही शुभ है। 

६. यह वायरस यह भी कहता है कि जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा - उस कर्म को भोगने के लिए तैयार रहना। पूरी दुनिया को काबू में कर लूंगा ऐसा घमण्ड कभी मत पालना, यह घमंड तुम्हे ही भारी पडेगा। तुम नम्र रहो ताकि दुसरो का अस्तित्व भी सुरक्षित रहे। दूसरा नहीं बचेगा तो तुम भी नहीं बचोगे -इस सत्य को अब कभी मत भूलना। 

इस वायरस की आवाज है कि मैंने इसलिए अपने पाँव पसारे है क्योकि तुम सीमा के बहार जा रहे थे, तुम्हारे कारण अन्य जीवो की सुरक्षा को खतरा था। तुम ज्यादा अहंकारी बन रहे थे।  तुम्हे दुसरो के दुःख की कोई चिंता नहीं थी। तुम ज्यादा ही स्वछंद हो चूके थे। तुम्हारे भीतर की संवेदना और मानवता मिटती जा रही थी। तुम अपने धन के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। इस लिए मैंने अपना फ़र्ज़ निभाया है। इसको कुदरत की क्रूरता मत समज़ना, आशीर्वाद समझना की तुम्हे जगाया, संभाला, सावचेत और सतर्क किया। 

आप लोग दो सप्ताह घर में रहे इतने में तो पूरी पृथ्वी हील होने लगी, प्राणी सृष्टि को अपनी स्वतंत्रता का अहसास हुआ।  पर्यावरण खिलने लगा।  वायु शुद्ध होने लगी, जल में जीवंतता और निर्मलता आने लगी। तुम्हारे एक के सीधे होने से दुनिया को कितना लाभ हुआ? तुम अब भी जाग जाओ और जागे रहोगे तो फिर हम कभी नहीं आएंगे। यदि इसमें फिर कोई भूल कि तो हमें लाचारीवश फिर आना पड़ेगा।  मुझे आशा है कि अब आप मुझे आने केलिये बाध्य नहीं करोगे।तकलीफ के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।     

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