मृत्य बहुत कुछ लिखा गया है, बोला गया है। फिर भी मृत्यु एक रहस्य है। मेरी सोच ऐसी है कि मृत्यु के बारे में ज्यादा सोचने से कुछ लाभ नहीं, बहुत बार नुकशान होता है। लाभ इसलिए नहीं है कि हम मृत्यु को कंट्रोल नहीं कर सकते। उसका जब समय आएगा तब वह आएगी। मृत्यु की चर्चा करने से नुकशान यह है कि जितना समय उसके बारे में सोचने में गवाया उतने समय में जीवन को खूबसूरत बनाया जा सकता है। जीवन को उसकी परिपूर्णता में जीना ही मृत्यु के डर से बाहर निकलने का उपाय है।
आदमी अगर इतना समझ ले कि मुझे और मेरे साथ जुड़ा हुआ हर इन्सान एकदिन शरीर छोड़ेगा। शरीर की आसक्ति न रखते हुए जीवन को अनासक्त भाव से आत्मा की अनुभूति के साथ जीया जाय तो क्यों मरने से डरना। मृत्यु के पहले यह बात दृढ हो जानी चाहिए कि देह एक दिन छूटेगा। ज्ञानी कहते है कि एक दिन नहीं, जब से जन्म हुआ है मरना शरू हो जाता है। हम इस ज्ञान को इतना दृढ कर ले कि मौत शरीर और सम्बन्धो की होती है। आत्मा की कोई मोत नहीं है। आत्मा अपने कर्मो के अनुसार नया देह धारण कर लेता है। कोई मर जाने के कारण हम नहीं रट है, उस जीव के साथ अपनी आसक्ति का बंधन था इस लिए रोते है। ज्ञानी किसी की मृत्यु पर रोता नहीं, हँसता है। वो जानता है एक सम्बन्ध पूरा हुआ और दूसरा सम्बन्ध शरू हुआ। ज्ञानी लोग इसी लिए मृत्यु का शोक नहीं करते, उसका उत्सव मनाते है।
अभी मलेशिया के एक प्रवचन में मैंने कहा था -
हमारा धर्म मृत्यु का महोत्सव मनाने की प्रेरणा देता है। आज का व्याख्यान सुनने के बाद तो आपको इस पर गहराई से सोचना चाहिए। हम ऐसा क्यों न करे कि किसी का मृत्यु हो तो आनंद के साथ, शुभ मंत्रो का उच्चार करते करते उस आत्मा को विदाई दे। क्योकि मृत्यु एक महोत्सव है। मृत्यु एक यात्रा है - तीर्थ यात्रा एवं श्मशान यात्रा। यात्रा मतलब यह एक जर्नी है, एन्ड नहीं है। वो जीव मर नहीं गया है, यहाँ ७०-८० साल तक एक स्टेशन लिया था, फिर आगे की यात्रा पर निकल गया। उसमे रोने की क्या जरुरत है? उत्साह से उस प्रसंग को मनाओ। हम कोशिश करे इस सत्य को जीने की। अरे, कोई ७०-८० साल की उम्र में गुजर जाए, जिसकी अब घर में किसी को कोई जरुरत नहीं थी, उसके लिए क्यों रोना धोना ? अब आनंद मानव कि बिचारा शांति से मुक्त हुआ। कितने परेशान हो रहे थे, पीड़ा भोग रहे थे - गये शांति से।
हमारा पारिवारिक मिथ्या मोह और समाज जी गलत इज्जत के कारण उस जीव को हम विदा नहीं देते है। डालो उसको नलियों पर, आर्टिफिशयल सपोर्ट पर। मै सोचता हूँ क्या करना अब उसे और जीला कर? बहुत लोग तो बिचारे विल में लिखते है कि मुझे मत चढ़ाना नलिओं पर, मुझे जाने देना शांति से, यहाँ रहने तो नहीं दिया शांति से अब जाने तो दो शांति से, फिर भी नलिओं पर चढ़ाते है। एक उम्र के बाद आप समझ कर संसार छोडो अन्यथा कुदरत आपको छूडायेगा। मरते समय कुछ साथ नहीं आता है, सिर्फ तीन चीजे साथ में आएगी - आत्मा - कर्म और संस्कार। जीवन भर विचारो, आदतों और प्रवृतिओ से जो संस्कार कर्मो के रूप में एकत्रित हुए है वह अगले जन्म में आत्मा के साथ जायेगा।