ज्ञानी के वचनो में दृढ आश्रय से सब साधन सुलभ हो जाते है
Peace of Mind

"ज्ञानी के वचनो में दृढ आश्रय से सब साधन सुलभ हो जाते है।"

इस विषय पर आज २६ एप्रिल को तीसरा प्रवचन पूज्य जशराजजी महाराज ने दिया - इसका सार इस प्रकार है -

अपनी साधना के अनुरूप साधनो की खोज है या अपनी इच्छा के अनुरूप साधन चाहिए? साधनो की बहुत विविधता है। हम कौन से साधन चुनते है ? साधन हमें मुक्ति की और ले जाते है या बंधन की और ? हम साधनो का उपयोग किस दिशा में करते है ? हम जो साधन चुनते है, उस पर ज्ञानी की महौर होनी चाहिए। साधन जो हमारे पास है वो ही साधन दुसरे - तीसरे और चौथे आरे में भी थे। पहले तो पूछो कि ज्ञानी के वचनो में दृढ श्रद्धा है? वीतरागी पर श्रद्धा है? श्रद्धा होगी तो वो साधन हमें बचा लेंगे। श्रद्धा नहीं होगी तो हम विपरीत चलेंगे - गिरेंगे।

हमें मानव भव मिला है, दस प्राण मिले है। वे साधन है। भगवान ने कहा चार साधन है - मनुष्यत्वं, श्रवण, श्रद्धा, साधना में समय और शक्ति का नियोजन। मनुष्य भव का उपयोग ज्ञानी के वचनो के अनुसार करते है? मानव देह पाप के लिए है या शुद्धि के लिए? ज्ञानी की दृष्टि के अनुसार साधना करो - स्वयं की इच्छा से नहीं, स्वयं की इच्छा से करना अहम ही बढ़ाएगा। कितने साल साधना करो - आज्ञानुसार नहीं है तो गति नहीं होगी। क्रिया करो, जप करो, तप करो, ध्यान करो, सेवा करो, दान करो - अपनी मति से करोगे तो भटकोगे। दवा डॉकटर के कहे अनुसार लोगे तो काम होगा, अन्यथा नुकसान भी हो सकता है। बेंगलोर जाना है और रास्ता मालूम नहीं है तो किसी जानने वाले को पूछना पड़ेगा। अन्यथा भटकते रहोगे।

आज कल लोग साधना बहुत कर रहे है लेकिन जिसने वो मार्ग देखा है, उनसे कन्फर्म करो कि यह मार्ग पहुचायेगा न!! मान्यता से मत जीओ - रूटीन से मत जीओ। मान्यता व्यक्ति को जड़ बनाती है - मान्यता कैसी भी हो - जड़ बनाती है। मान्यता का बंधन साधक को साधना से दूर ले जाता है। कमल कीचड़ में उगता है - गंदे से गन्दा पानी है - दुर्गन्ध आती है। मनुष्य कमल होने के लिए जन्मा है। संसार और राग द्वेष कीचड़ है - ऊपर उठने की साधना करो - कमल बन जाओगे। प्रकृति संज्ञा प्रधान है - प्रकृति का सब काम संज्ञा से हो रहा है। हम मनुष्य है हमारा काम सज्ञा से नहीं, आज्ञा से होना चाहिए। ज्ञानी पुरुष कीचड़ थे - कमल हो गए। हम उनकी बात माने।

प्रतिमा को फूल चढ़ाते है - क्यों? यदि हम पूछे कहा गए थे सुबह सुबह, सेवा और पूजा करने गए थे। सेवा और पूजा हुई ? व्यक्ति व्यक्ति रहता है और वीतराग वीतराग। क्या हम वीतरागता की और आगे बढे? फिर  पूजा क्या की? सेवा क्या की? भगवान भगवान कैसे बने पूरी प्रक्रिया जानो और उस अनुसार करो - यह भगवान् की भाव पूजा है। मनुष्यत्व का सदुपयोग करो। श्रवण का साद उपयोग करो - ज्ञानी को सुनो - उस अनुसार चलो। हम सबको सुनेंगे लेकिन ज्ञानी को नहीं सुनेंगे।

आज तो शायद कोी वीतराग नहीं है , लेकिन वीतराग के शास्त्र तो है न, उनको समझो और उस अनुसार जीने की कोशिश करो। श्रद्धा भी ज्ञानी पर रखो, हमारी श्रद्धा तो रागी पर है तो वो भटकायेगा। भगवान ने जो कहा है, उस मार्ग पर जो ईमानदारी से चल रहे है - उनकी तो सुनो। अपने अहंकार को चोट लगती है। अरे यार किसी की न सुनो तो अपने भीतर आत्मा की आवाज तो सुनो। भीतर भी एक ज्ञानी बैठा है - आत्मा ज्ञान है, आत्मा गुरु है। आत्मा की सुनो और उस पर श्रद्धा करो तो भी पहोच जाएंगे। पुरुषार्थ साधना में करना - शक्ति एवं समय का नियोजन सम्यक साधना में करना। साधना वो है जो आपको भीतर से बदले और आत्मानीभूति तक ले जाए वो साधना सम्यक है।

26 April 2019

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