ज्ञानी के वचनो में दृढ आश्रय
Peace of Mind

ज्ञानी के वचनो में दृढ आश्रय

आज साधना का दूसरा दिन है। मुनिश्री ने साधको को प्रवचन दिया उसका सार इस प्रकार है -  

ज्ञानी के वचनो में दृढ आश्रय जिसे हो उन्हें सर्व साधन सुलभ होता है। ज्ञानी वो है जिसे सम्यक दर्शन प्राप्त है। जिसे सम्यक दर्शन हो गया उनकी बातो में आश्रय करके उसके बताये मार्ग पर चले तो कल्याण निश्चित्त है। अज्ञानी को श्रद्धा मिथ्यात्वी की बातो में होती है। शब्दों में व्यक्ति को कितना अनुराग होता है। नजदीक की व्यक्ति के शब्दों से सुख भी ज्यादा होता है और दुःख भी ज्यादा होता है। दूर का व्यक्ति बोले तो उपेक्षा कर सकते है। उपेक्षा में द्वेष है , अपेक्षा में राग है। जब अपेक्षा तूटेगी तो उपेक्षा होगी। योग की दो ही क्रिया होती है - शुभ और अशुभ। वह शुद्ध कभी हो ही नहीं सकती है। हमें उनसे बहार आना है। विकल्प शून्य होने से योग समाप्त - शुभ और अशुभ दोनों योग समाप्त होते है। व्रत नियम जीव को अशुभ से शुभ में ले जाता है। ध्यान जीव को शुद्ध में ले जाता है। अज्ञानी के वचनो में दृढ़ता होती है, क्योकि हमारे भीतर उन जैसे राग द्वेष है। ज्ञानी के वचन वीतरागता की और इशारा करता है - उसमे क्षयोपशम भाव है। जिसमे वीतरागता का भाव है उन्हें ज्ञानी के वचनो में दृढ़ता होगी। उन्हें मालूम है कि यह वचन मेरे लिए है, मेरे दुःख इसी से मिटने वाले है। फिर उन्हें कर्मो का उदय संयोग कुछ नहीं कर सकता है।उदय संयोग सब भूत भावी है। वर्तमान क्षण में आये तो दुःख समाप्त हो जाता है।

पंचम आरे में शुक्ल ध्यान नहीं हो सकता - ऐसी मान्यता है। पंचम आरे में अशुद्ध ध्यान हो सकता तो शुद्ध ध्यान क्यों नहीं हो सकता ? पंचम आरे में शुक्ल ध्यान की प्रारम्भिक दशा को छूआ जा सकता है। सम्यक दर्शन पंचम आरे में संभव है तो कैसे संभव है ? ध्यान में निर्विकल्प दशा नहीं आएगी तो सम्यक दर्शन कैसे होगा? मनुष्य जन्म सुलभ, श्रवण उससे भी दुर्लभ है। श्रद्धा उससे भी दुर्लभ एवं समय तथा शक्ति को साधना में लगाना इससे भी दुर्लभ है। श्रवण सम्यक नहीं होता, क्योकि हमारी मान्यता के विरुद्ध कुछ बोले तो हम सुन नहीं पाते। मान्यता एवं प्रमाद - साधक के दो बड़े दुश्मन है। मान्यता हमारे दिमाग में किसी ने डाली है। उस मान्यता के लिए हम कुछ भी पाप कर सकते है। बिना मान्यता के ज्ञानी को सुनना कल्याण का मार्ग है।

आनंद श्रावक की समृद्धि कितनी? आज ऐसी समृद्धि किसी के पास नहीं। एक बार भगवान की बात सुनी - यह श्रवण है। हाथ जोड़ कर बैठ गया - शब्द की चोट हुई की दृष्टि खुल गई। हमें चोट लगती है लेकिन ज्ञानी की नहीं, अज्ञानी की। दृष्टि कभी नहीं खुलती। आनंद कहता है - प्रभु आपके निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है। जिसकी सब ग्रंथिया खुल गई वो निर्ग्रन्थ है। प्रभु मैं देश विरति श्रावक बनाना चाहता हूँ - वही का वही श्रावक बन गया। ज्ञानी पुरुषों के वचनो में दृढ श्रद्धा क्यों नहीं है ? क्योंकि हमें लगता है - सुख दुःख वस्तु एवं व्यक्ति में है। कौन तुम्हे सुखी करता है - पांच इन्द्रियों के विषय सुख देता है - भ्रान्ति है। अमुक व्यक्ति सुख देता है - महाभ्रांति है। आदमी बड़ी भ्रान्तिओ में जीता है। सुख दुःख भीतर है। ज्ञानी के ऐसे वचन पर दृढ श्रद्धा रखोगे तो तुम्हे हर साधन साध्य तक ले जायेगा। दृष्टि गलत है तो साधन सही दिशा में नहीं ले जायेगा।

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