ध्यान साधना - दूसरा दिन - रामबाई आश्रम - ववाणिया - २२ मार्च २०२५
Peace of Mind

रामबाई मा आश्रम: Second Day 

ववाणिया, 22 मार्च 2025

आज साधना का दूसरा दिन संपन्न हो रहा है। मौन, एकांत और ध्यान साधना का यह प्रयोग निवृत्ति का अभ्यास है। निरपेक्ष आनंद की अनुभूति हो रही है। जैन जीवन दर्शन के अध्ययन के बाद यह निर्णय दृढ़ हो गया है कि महावीर का मार्ग निवृत्ति का है।

"ठाणेणम्, मोणेणम्, झाणेणम्, अप्पाणम् वोसिरामि:"

अर्थात् शरीर को स्थिर करना, वाणी को मौन रखना और मन को ध्यान में लीन कर आत्मा को समर्पित कर देना — ये तीनों महावीर की साधना के मार्ग हैं। महावीर की साधना का मार्ग व्यक्ति के भीतर खुलता है, बाहर नहीं। बाहर भ्रम है, भीतर सत्य है।

यह मार्ग स्वयं को ही साथी बनाकर अकेले निकल पड़ने का है। सही समय और उचित उम्र में आवश्यक कार्य कर लेने चाहिए, इसी भाव से यह साधना यात्रा शुरू की है। "एकला चलो रे" की मानसिकता के साथ आध्यात्मिक यात्रा वर्षों से गतिमान है। अब और अधिक स्पष्ट हो रहा है कि भीड़ की अपेक्षा एकांत का आनंद अनुपम होता है।

यदि शांति से आत्मनिरीक्षण करें, तो पता चलता है कि कई सारी गतिविधियाँ ऐसी हैं, जिनका कोई अर्थ या उद्देश्य नहीं है, जबकि कई साधनाएँ ऐसी हैं, जिनके बिना जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। यदि हम कीर्ति, नाम और सम्मान पाने की महत्वाकांक्षा को थोड़ा कम कर सकें, तो संतोष और शांति वास्तव में बढ़ जाते हैं।

इस अत्यंत संक्षिप्त जीवन में स्वयं को जानने का अवसर नहीं गंवाना चाहिए। यह साधना उसी दिशा में एक कदम है। इस साधना से जीवन का उद्देश्य और अधिक स्पष्ट हो रहा है।

~ समणजी

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